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### 2. सन् 1905 की क्रांति का रूस पर बड़ा प्रभाव पड़ा
सन् 1905 की रूसी क्रांति ने रूस पर गहरे और व्यापक प्रभाव डाले। इस क्रांति ने अपने आस-पास के राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक परिदृश्यों में महत्वपूर्ण बदलाव किए:
- **राजनीतिक प्रभाव**: क्रांति के परिणामस्वरूप सरकार ने एक संवैधानिक शासक प्रणाली की ओर बढ़ने का प्रयास किया। 'द रूसी ड्यूमा' की स्थापना हुई, जिससे जनता को भागीदारी का अवसर मिला।
- **सामाजिक प्रभाव**: क्रांति ने मजदूरों, किसान और अन्य सामाजिक वर्गों के हक के लिए जागरूकता बढ़ाई। श्रमिक संघों और राजनीतिक पार्टियों की संख्या में इजाफा हुआ।
- **आर्थिक प्रभाव**: आर्थिक असंतुलन और समाजवादी मांगों ने वित्तीय नीतियों में बदलाव लाना मजबूर किया। उद्योगों में सुधार और श्रम कानूनों में संशोधन किए गए।
- **राजशाही की कमजोरी**: क्रांति ने तख्तापलट करने के प्रयासों से ताशेबाज़ी सरकार की प्रतिष्ठा को कमजोर किया, जिससे आगे चलकर 1917 की क्रांति की भूमि तैयार हुई।
### 3. ड्यूमा क्या थी? यह कितनी सफल रही?
**ड्यूमा** रूस की एक संवैधानिक संस्थान थी जिसे सन् 1905 की क्रांति के बाद स्थापित किया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य सरकार और तख्तापलट करने वाले श्रमिकों व किसानों के बीच संवाद स्थापित करना था।
**ड्यूमा की सफलता:**
- **प्रारंभिक सफलता**: पहली ड्यूमा की स्थापना ने जनता को राजनीतिक भागीदारी का अवसर दिया। यह सरकार के खिलाफ आवाज उठाने और सुधारों की मांग करने में सफल रही।
- **सीमित शक्तियाँ**: हालांकि ड्यूमा ने कुछ हद तक सफलता प्राप्त की, लेकिन उसके अधिकार सीमित थे। सम्राट ने अक्सर ड्यूमा के निर्णयों को स्वीकार नहीं किया, जिससे इसकी प्रभावशीलता में कमी आई।
- **लगातार असंतोष**: ड्यूमा की सीमित शक्तियों और सम्राट द्वारा उसके निर्णयों को न मानने के कारण जनता में निराशा बढ़ी। इसके परिणामस्वरूप, कई बार ड्यूमा को भंग कर दिया गया और इसके अध्यक्षों को निष्कासित किया गया।
- **दीर्घकालिक प्रभाव**: ड्यूमा ने रूस में एक लोकतांत्रिक परंपरा की शुरुआत की, जिसने 1917 की फेब्रुवारी और अक्टूबर क्रांतियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
### 4. प्रथम विश्वयुद्ध में रूस की भागीदारी किस प्रकार रूसी साम्राज्य के पतन का कारण बनी?
प्रथम विश्वयुद्ध में रूस की भागीदारी ने रूसी साम्राज्य की कमजोरियों को उजागर किया और अंततः इसके पतन का कारण बनी:
- **आर्थिक बोझ**: युद्ध ने रूस पर भारी आर्थिक दबाव डाला। निर्यात कम हुआ, मुद्रास्फीति बढ़ी और आम जनता की जीवनशैली में गिरावट आई।
- **सैन्य असफलताएं**: रूस की सेना को युद्ध में कई बार हार का सामना करना पड़ा। इन असफलताओं ने सैनिकों और जनता में अविश्वास और असंतोष पैदा किया।
- **सामाजिक असंतुलन**: युद्ध के कारण मजदूरों और किसानों की स्थिति बिगड़ गई। खाद्य कमियों और आधारभूत सेवाओं की कमी ने जनता में विरोध को प्रबल किया।
- **राजनीतिक अस्थिरता**: युद्ध के कारण तख्तापलट के प्रयासों में वृद्धि हुई। 1917 में फरवरी क्रांति ने सम्राट निकोलस II की धराशायी होने का कारण बनी।
- **नेतृत्व की कमी**: सम्राट के नेतृत्व में निर्णय लेने में असमर्थता और काउंसिल ऑफ़ मिनिस्टर्स की अक्षमताएं रूस के पतन को तेज करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाईं।
इन सभी कारणों से रूस की प्रथम विश्वयुद्ध में भागीदारी ने साम्राज्य की कमजोरी को दर्शाया और अंततः इसके पतन का मार्ग प्रशस्त किया।
### 5. लेनिन की 'अप्रैल प्रतिज्ञाएँ' पर संक्षिप्त टिप्पणी
**लेनिन की 'अप्रैल प्रतिज्ञाएँ'** 1917 के अप्रैल में रूसी सोशलिस्ट पार्टी (बोल्शेविक) के प्रमुख नेता व्लादिमीर लेनिन द्वारा प्रकाशित की गईं। ये प्रतिज्ञाएँ रूस में क्रांतिकारी परिवर्तन की दिशा निर्धारित करने के लिए महत्वपूर्ण दस्तावेज थीं।
**मुख्य बिंदु:**
- **सर्वसत्तावाद**: लेनिन ने बुल्शेविकों के पक्ष में सर्वसत्तावादी शासन की मांग की, जिसमें श्रमिकों, सैनिकों और किसानों का पूरा नियंत्रण हो।
- **शांत युद्ध**: उन्होंने युद्ध समाप्ति की मांग की और युद्ध को समाप्त करने के लिए कूटनीतिक प्रयासों का समर्थन किया।
- **भूमि का राष्ट्रीयकरण**: कृषि भूमि को राष्ट्रीयकरण कर किसानों को वितरण की आवश्यकता पर बल दिया।
- **उद्योग का नियंत्रण**: प्रमुख उद्योगों को राष्ट्रीयकरण करने और इनकी प्रबंधन श्रमिक संघों के हाथ में देने की बात कही।
- **राष्ट्रवाद**: उपनिवेशवाद और दौरीवाद के खिलाफ राष्ट्रवादी नीतियों को अपनाने की आवश्यकता पर जोर दिया।
**प्रभाव:**
- **क्रांतिकारी ऊर्जा**: अप्रैल प्रतिज्ञाओं ने अन्य क्रांतिकारी समूहों को भी प्रेरित किया और बोल्शेविकों की लोकप्रियता बढ़ाई।
- **राजनीतिक विमर्श**: ये प्रतिज्ञाएँ रूसी राजनीति में सोशलिस्ट-रेवोल्यूशनरी विचारों को प्रमुखता प्रदान करने में सफल रहीं।
- **विदेशी हस्तक्षेप**: प्रतिज्ञाओं ने विदेशी शक्तियों को रूस में बोल्शेविक क्रांति के समर्थन के लिए आकर्षित किया।
### 6. बोल्शेविकों ने गृह-युद्ध के दौरान अर्थव्यवस्था को जारी रखने के लिए क्या किया?
रूस के गृह-युद्ध (1918-1922) के दौरान बोल्शेविकों ने अर्थव्यवस्था को स्थिर रखने और चलाने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए:
- **नेशनलाइजेशन**: बोल्शेविकों ने उद्योगों, बैंकों, व्यापारों और परिवहन प्रणालियों को राष्ट्रीयकरण किया। इससे अर्थव्यवस्था पर केंद्रीय नियंत्रण स्थापित हुआ।
- **रेश्नविकी (वापसी नीति)**: 1921 में लागू की गई रेश्नविकी नीति के तहत कृषि उत्पादों पर नियंत्रण स्थापित किया गया। किसानों से अनाज की मात्रा निर्धारित की गई ताकि शहरों तथा सेना की जरूरतों को पूरा किया जा सके।
- **पुनर्निर्माण कार्यक्रम**: विनिर्माण और उद्योगों के पुनर्निर्माण के लिए योजनाएं बनाईं गईं। विशेषकर भारी उद्योगों पर ध्यान केंद्रित किया गया।
- **पुनर्गठन की योजना**: अर्थव्यवस्था को पुनर्गठित करने के लिए पंचवार्षिक योजनाओं (Five-Year Plans) की शुरुआत की, जिन्होंने उत्पादन के लक्ष्यों को निर्धारित किया।
- **प्रतिकूल आर्थिक नीतियां**: आवश्यकतानुसार साम्यवाद की नीतियों को अपनाया, लेकिन रेश्नविकी के कारण किसानों में असंतोष बढ़ा और खाद्य संकट उत्पन्न हुआ।
- **सामाजिक नीतियाँ**: मजदूरों के लिए सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएँ और आवास योजनाओं को लागू किया गया ताकि श्रमिक वर्ग की स्थिति में सुधार हो सके।
इन उपायों के माध्यम से बोल्शेविकों ने गृहयुद्ध के दौरान अर्थव्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने का प्रयास किया, हालांकि अनेक चुनौतियों और कठिनाइयों का भी सामना करना पड़ा।
Revisado y aprobado por el equipo de tutoría de UpStudy
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